[ग़ज़ल] उसके ख़याल-ओ-ख़्वाब में गुज़री तमाम रात
- उसके ख़याल-ओ-ख़्वाब में गुज़री तमाम रात
या'नी कि इज़्तराब में गुज़री तमाम रात - दिन भर हमें सताती रही फ़िक्र-ए-रोज़गार
और 'इश्क़ के 'अज़ाब में गुज़री तमाम रात - किस किस ने कौन कौन सा ग़म किस तरह दिया
अपनी इसी हिसाब में गुज़री तमाम रात - ज़िन्दान-ए-रोज़-ओ-शब से रिहाई किसे नसीब
इस ख़ानः-ए-ख़राब में गुज़री तमाम रात - साक़ी की इक निगाह ने सर्मस्त यूँ किया
जैसे मेरी शराब में गुज़री तमाम रात - फिर ज़ुल्फ़-ए-ताबदार का उसकी हुआ है ज़िक्र
फिर अपनी पेच-ओ-ताब में गुज़री तमाम रात - जब भी सुनाने बैठे उसे दास्तान-ए-शौक़
बस हसरतों के बाब में गुज़री तमाम रात - "ख़ुरशीद" शब भर उससे न कह पाए हाल-ए-दिल
लफ़्ज़ों के इन्तिख़ाब में गुज़री तमाम रात
Labels: ग़ज़ल
6 Comments:
महोदय
आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में स्वागत है।
मेरे ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी के माध्यम से मैं आपके ब्लॉग तक पहुँचा और आपकी गज़लें पढ़कर मन खुश हो गया।
एक आश्चर्य हुआ कि आपका ब्लॉग अब तक हिन्दी एग्रीग्रेटर पर क्यों नहीं है।
आप का लिखा अन्य लोगों तक पहुँचे उसके लिये आप नारद , चिट्ठाजगत , ब्लॉगवाणी और हिन्दी ब्लॉग्स पर अपने चिठ्ठे( ब्लॉग ) का पंजीकरण करवाईये।
आपकी तथा मेरी तरह हिन्दी में लिखने वाले भी कम से कम डेढ़ हजार लोग बढ़िया पढ़ने के लिये हमेशा तैयार रहते हैं।
किसी भी तकनीकी जानकारी के लिये मेल करें sagarnahar et gmail.com और हाँ मैने अपनी पोस्ट में से मेहदी हसन साहब का नाम सुधार दिया है
ख़ुरशीद" शब भर उससे न कह पाए हाल-ए-दिल
लफ़्ज़ों के इन्तिख़ाब में गुज़री तमाम रात
waah, kya baat hai...
sagar ji ne bilkul duruust farmayaa..aap blogvani,chitthajagat aadi pe aayen..aapko kaafi log padhna chaahengey...
उसके ख़याल-ओ-ख़्वाब में गुज़री तमाम रात
या'नी कि इज़्तराब में गुज़री तमाम रात
दिन भर हमें सताती रही फ़िक्र-ए-रोज़गार
और 'इश्क़ के 'अज़ाब में गुज़री तमाम रात
बेहतरीन ग़ज़ल है...अपने ब्लॉग में आपके ब्लॉग का लिंक दे रही हूं...
बहुत खूब !
"ख़ुरशीद" शब भर उससे न कह पाए हाल-ए-दिल
लफ़्ज़ों के इन्तिख़ाब में गुज़री तमाम रात
kya khub kahi hai apne......................
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