Friday, May 27, 2005

[ग़ज़ल] बचा बचा के वो चलता है पैरहन मुझसे1

  1. हुआ है जब कभी उस शोख़ का सुख़न मुझसे
    जला किये हैं तमाम 'अहल-ए-अनजुमन मुझसे2

  2. बयान कैसे हो उस शख़्स की फबन मुझसे
    सँभलते ही नहीं काम-ओ-लब-ओ-दहन मुझसे

  3. हर एक बात पे मेरी है ता'ना-ज़न ये जहाँ
    रखा है ख़ूब ही दुनिया ने हुस्न-ए-ज़न्न मुझसे!

  4. अब उसका-मेरा त'अल्लुक़ इसी से है वाज़ेह:
    बचा बचा के वो चलता है पैरहन मुझसे

  5. कहूँ तो 'इश्क़ में क्यूँकर मैं ख़ुद को ला-सानी
    जुनूँ में आगे हैं जब क़ैस-ओ-कोहकन मुझसे3

  6. किसी किसी को मिली राह-ए-'इश्क़ में मंज़िल
    हैं फिर भी कितने इसी रह पे गाम-ज़न, मुझ से!

  7. बहुत हैं राह-ए-मुहब्बत में पेच-ओ-ख़म, ऐ दोस्त!
    ये कह रही है तिरी ज़ुल्फ़-ए-पुरशिकन मुझसे

  8. तिरी उमीद, तिरी आरज़ू, तिरी हसरत
    है कोई जिसमें हो बेहतर ये फ़िक्र-ओ-फ़न्न मुझसे?

  9. क़फ़स में हूँ, प' रहाई की कुछ नहीं ख़्वाहिश
    है वज्ह-ए-हैरत-ए-मुर्ग़ान-ए-हर चमन मुझसे

  10. रही है दैर-ओ-हरम से मुझे भी कब रग़बत?
    रखें न राह भी अब शैख़-ओ-बरहमन मुझसे

  11. ग़ज़ल तो कहता हूँ, 'ख़ुरशीद', पर वो बात कहाँ
    'कि मैं सुख़न से हूँ मशहूर और सुख़न मुझसे'1

  1. मिसरा'-ए-तरह राजीव चक्रवर्ती 'नादाँ' ने इनायत फ़रमाया है.
    'कि मैं सुख़न से हूँ मशहूर, और सुख़न मुझसे' [नामा'लूम]

  2. ये शे'र राजीव साहिब के साथ गुफ़्तगू के दौरान हुआ.

  3. ये शे'र दरअस्ल है मेरा ही, मगर आप को 'नादाँ' की ग़ज़ल में भी दर्ज मिलेगा -- ये मेरी जानिब से उन्हें ख़िराज-ए-अक़ीदत है.

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