[आज़ाद नज़्म] 'उम्र-ए-दराज़
यह मेरी पहली कोशिश है 'आज़ाद' (और जदीद) नज़्म कहने की. देखिये अगर किसी क़ाबिल हो:
'उम्र-ए-दराज़
मेरे कमरे की बन्द खिड़की से
एक बूढ़ा दरख़्त दिखता है
जिस पे पतझड़ का ही रहता है ये मौसम
पैहम
Labels: नज़्म
परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की ता'लीम
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक
-- 'ग़ालिब'
The Urdu writings of U.V. Ravindra 'Khursheed' offered in the Hindi script. The Devanagari version of this blog.
यह मेरी पहली कोशिश है 'आज़ाद' (और जदीद) नज़्म कहने की. देखिये अगर किसी क़ाबिल हो:
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