Thursday, February 03, 2005

[आज़ाद नज़्म] 'उम्र-ए-दराज़

यह मेरी पहली कोशिश है 'आज़ाद' (और जदीद) नज़्म कहने की. देखिये अगर किसी क़ाबिल हो:

'उम्र-ए-दराज़

मेरे कमरे की बन्द खिड़की से
एक बूढ़ा दरख़्त दिखता है
जिस पे पतझड़ का ही रहता है ये मौसम
पैहम

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