[ग़ज़ल] 'इश्क़ में दिल पे बार सा क्यों है?
- 'इश्क़ में दिल पे बार सा क्यों है?
दर्द बेइख़्तियार सा क्यों है? - ज़िन्दगी से फ़रार सा क्यों है?
मौत का इन्तेज़ार सा क्यों है? - फिर ये दिल बेक़रार सा क्यों है?
हर घड़ी अश्कबार सा क्यों है? - है ख़ुशी फिर ख़ुशी, मुझे तेरा
ग़म भी नापायेदार सा क्यों है? - जब नहीं तुझको पास-ए-'अह्द-ए-वफ़ा,
फिर मुझे ऐतबार सा क्यों है? - हुस्न से हर बिसात पर हारा:
'इश्क़ यूँ बदक़िमार सा क्यों है? - कौन गुज़रा है कूचा-ए-दिल से?
चार सू इक ग़ुबार सा क्यों है? - होंठ जिसके हैं फूल की मानन्द
उसका हर लफ़्ज़ ख़ार सा क्यों है? - दिल में ज़ख़्मों की हर तरफ़ है बहार
फिर भी उजड़े दयार सा क्यों है? - चश्म-ए-साक़ी का है असर, वरना
बिन पिये ही ख़ुमार सा क्यों है? - नामुक़िर* किस गुनह का है 'ख़ुरशीद'?
ख़ुद को कहता ये पारसा क्यों है?
* नामुक़िर होना: इनकार करना, इक़बाल न करना
Labels: ग़ज़ल
0 Comments:
Post a Comment
<< Home