[ग़ज़ल] उसके ख़याल-ओ-ख़्वाब में गुज़री तमाम रात
- उसके ख़याल-ओ-ख़्वाब में गुज़री तमाम रात
या'नी कि इज़्तराब में गुज़री तमाम रात - दिन भर हमें सताती रही फ़िक्र-ए-रोज़गार
और 'इश्क़ के 'अज़ाब में गुज़री तमाम रात - किस किस ने कौन कौन सा ग़म किस तरह दिया
अपनी इसी हिसाब में गुज़री तमाम रात - ज़िन्दान-ए-रोज़-ओ-शब से रिहाई किसे नसीब
इस ख़ानः-ए-ख़राब में गुज़री तमाम रात - साक़ी की इक निगाह ने सर्मस्त यूँ किया
जैसे मेरी शराब में गुज़री तमाम रात - फिर ज़ुल्फ़-ए-ताबदार का उसकी हुआ है ज़िक्र
फिर अपनी पेच-ओ-ताब में गुज़री तमाम रात - जब भी सुनाने बैठे उसे दास्तान-ए-शौक़
बस हसरतों के बाब में गुज़री तमाम रात - "ख़ुरशीद" शब भर उससे न कह पाए हाल-ए-दिल
लफ़्ज़ों के इन्तिख़ाब में गुज़री तमाम रात
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